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Sunday, December 8, 2024

ख्वाहिश नहीं मुझे, मशहूर होने की (मुंशी प्रेमचंद जी या हरिवंशराय बच्चन की एक "सुंदर कविता")

ख्वाहिश नहीं मुझे,  मशहूर होने की

ख्वाहिश नहीं मुझे,

मशहूर होने की,

आप मुझे पहचानते हो,

बस इतना ही काफी है,

अच्छे ने अच्छा,

और बुरे ने बुरा जाना मुझे,

क्योंकि जिसको जितनी जरूरत थी,

उसने उतना ही पहचाना मुझे,

जिंदगी की फलसफा भी,

कितनी अजीब है,

शामें कटती नहीं,

और साल गुजरते चले जा रहे हैं,

एक अजीब सी,

दौड़ है ये ज़िंदगी,

जीत जाओ तो कई,

अपने पीछे छूट जाते हैं,

और हार जाओ तो,

अपने ही पीछे छोड़ जाते हैं,

बैठ जाता हूं,

मिट्टी पर अक्सर, क्योंकि मुझे अपनी,

औकात अच्छी लगती है

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