Saturday, September 16, 2023

ज़िंदगी को अपनी शर्तों पर जीने लगें

 ज़िंदगी को अपनी शर्तों पर जीने लगें


ज़िंदगी की ज़रूरतों को
पूरा करने के लिए
हमने ज़रूरतों को
आदत बना ली है

ज़रूरतें बढ़ती गईं
और आदतें बढ़ती गईं
ज़िंदगी छोटी होती गई
और हम बड़े होते गए

ज़रूरतों ने हमें
अपने घेरे में ले लिया
और आदतों ने हमें
ज़ंजीरों में जकड़ लिया

हमने ज़रूरतों को
अपना मालिक बना लिया
और आदतों को
अपना गुलाम बना लिया

अब ज़रूरतें हमें
रोकती हैं
और आदतें हमें
खींचती हैं

हम ज़रूरतों के पीछे दौड़ते हैं
और आदतों के पीछे भागते हैं

ज़रूरतों और आदतों में
हम खो गए हैं
और ज़िंदगी में
हम भटक गए हैं

अब हमें ज़रूरत है
कि हम ज़रूरतों और आदतों से
आज़ाद हों

और ज़िंदगी को
अपनी शर्तों पर जीने लगें

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